यहा मंगल कामना को लेकर उमड़ता है,आस्था का सैलाब

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दिलदारनगर (गाजीपुर )। जनपद में सभी मंदिरों की एक अलग-अलग अपनी पहचान बनी हुई है। इसी के कड़ी में जिले में एक ऐसा मंदिर है। जिसका अस्तित्व समाप्त करने में अंग्रेजों को नाको चाना चबाना पड़ा था फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। हम बात कर लहे है सायर माता की, जाने सच्चाई चल रहे वासान्तिक नवरात्र में शक्ति पीठों व देवी मंदिरों में अपने कुल परिवार की मंगल कामना को लेकर आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। इसी क्रम में स्थानीय रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या तीन और पांच के मध्य लोक आस्था की प्रतिक मां सायर का भी मंदिर है। जानकार लोग बताते है की जिनकी शक्ति के आगे अंग्रेज इंजिनियर को भी नतमस्तक होना पड़ा था। वैसे तो बिहार, बंगाल, झारखण्ड से लगायत पूर्वांचल के दूर दराज से मांगी हुई मुराद पूरी होने पर वर्ष भर माता के भक्तों का आने जाने का सिलसिला लगातार चलता रहता है। लेकिन शरदीयौर और वासंतीक नवरात्र में माता के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों का रेला उमड़ पड़ता है। बड़े बुजुर्गो की माने तो लोक आस्था की प्रतिक माता सायर माता का अस्तित्व उस समय उभर कर सामने आया. जब सन 1945 के आसपास प्लेटफार्म संख्या 5 से अप लूप लाइन बिछाने का कार्य अंग्रेज रेल अभियंता जिसे प्लेटियर साहब के नाम से जाना जाता था करा रहे थे। बकौल उसिया दक्षिण मोहल्ला निवासिनी 85 वर्षीय सोनमती पत्नी स्व. जीवनाथ राम ने बताया कि रेलवे ट्रैक बिछाने के क्रम में इस स्थान पर दलित बस्ती आबाद हुआ करती थी। जिसे यहां से हटा कर ग्रामसभा उसिया दक्षिण मोहल्ले में आबाद किया गया। जिनकी कुल पूज्य देवी मां सायर जिन्हें तत्कालीन नाम श्रद्धा देवी के नाम से पुकारा जाता था। रेलवे ट्रैक बिछाए जाने वाले स्थान पर ही पिंडी के रूप में नीम के पेड़ तले विराजमान थीं। राह में पड़ने वाले झाड़-झंखाड़ और नीम के पेड़ को साफ करने का हुक्म प्लेटियर साहब ने दिया तो मजदूर झाड़ -झंखाड़ साफ करने के क्रम में जब नीम के पेड़ की कटाई करते शाम ढल गई थी। थके हारे मजदूर भोजन कर सो रहे थे तो माता स्वप्न में प्रकट हो नीम का पेड़ नहीं काटने की बात मजदूरों से बोलीं. सुबह जब मजदूर काम पर आये तो स्वप्न वाली बात अंग्रेज इंजिनियर को बता पेड़ काटने से इंकार कर दिया। तब प्लेटियर साहब ने जहां मां सायर की पिंडी थी. उसे अपने खास मजदूरों को बुला कर काटने को कहा. आखिर अपने अधिकारी की बात मान जब मजदूरों ने नीम के तने पर कुल्हाड़ी चलाई तो लाल रक्तनुमा द्रव की धार तने से फुट पड़ी. नीम के पेड़ को काटने वाले मजदूरों पर मां का कहर ही टूट पड़ा और तीनों मजदूरों की मौत हो गयी। वहीं अंग्रेज इंजिनियर प्लेटियर साहब का पांच वर्षीय पुत्र की भी तत्काल मौत हो गई। जिसका क़ब्र आज भी वरीय अनुभाग अभियंता (रेल पथ ) के बंगला परिसर में मौजूद है। माता का प्रकोप इससे भी शांत नहीं हुआ और प्लेटियर साहब भी गंभीर रूप से बीमार हो गए। जब बिस्तर पकड़ लिए तो उनकी पत्नी घबड़ा गई और आस पास के लोगों की सलाह पर माता सायर की उपस्थिति का एहसास कराते हुए माता की चौणाई बंधवाने के साथ पिंडी स्थापित करने की सलाह दी. साथ ही माता से क्षमा याचना करने की बात बताई गई। रोचक तथ्य यह भी बताया जाता है कि सायर माता के पिंडी स्थल से बिछाया गया रेलवे ट्रैक उस स्थान से उखड़ा हुआ मिलता था. विवश होकर प्लेटियर साहब की पत्नी ने उस स्थान पर माता की चौड़ाई का निर्माण करा पिंडी स्थापना कर अपने गंभीर बीमारी से जूझ रहे पति प्लेटियर साहब के साथ पूजा अर्चना कर माफी मांगी. तब जा कर माता का प्रकोप शांत हुआ और वह स्वस्थ हो गया। आज मां सायर की शक्ति का जीता जागता प्रमाण है की माता के मंदिर के बगल से बिछा प्लेटफार्म नंबर पांच का टेढ़ा बिछना रेलवे ट्रैक। इस मंदिर की सेवादारी में लगे ग्रामसभा निरहु का पूरा निवासी स्व. जमुना यादव की दूसरी पीढ़ी के धनपत यादव की माने तो यहां वर्ष भर मन्नत मांगने को लेकर दूरदराज से भक्तों के आने का सिलसिला चलता रहता है. मुराद पुरी होने का साक्षात् प्रमाण है सैकड़ो की संख्या में माता के दरबार में टंगे घंटे।

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